बंगसील में भोलेनाथ के प्राचीन मंदिर में हरियाली डाली गयी। 

बंगसील स्थित भोले नाथ के प्राचीन मंदिर में गत रात्रि को वैदिक मंत्रोचारण व पारंपरिक रीति रिवाजों के साथ भाद्रपद में पढ़ने वाली हरियाली का विधिवत शुभारंभ हो गया है।
पर्यटन नगरी मसूरी के समीपी जौनपुर विकासखंड में ख्याति प्राप्त तीर्थाटन व मनमोहक पर्यटक स्थल बंगसील देवलसारी के प्राचीन मंदिर में भाद्रपद की संक्रांति की देर सांय को त्रिलोकी नाथ के जयघोष के साथ मंदिर के पुजारी विजय गौड़ ने वैदिक मंत्रोचारण पारंपरिक रीतिरिवाज़ों के साथ सभी  ग्रामीणों की मौजूदगी में भोले नाथ की हरियाली डाली। गांव के लंबरदार, सयाना, गोबिंद सिंह राणा ने बताया कि पौराणिक प्रथा के मुताबिक एक साल देवलसारी के प्राचीन मंदिर में भोले नाथ की हरियाली ग्राम पूजालड़ी निवासियों के नेतृत्व में डाली जाती है, जबकि दूसरे वर्ष ग्राम बंगसील के  नेतृत्व में सृष्टि के दाता भगवान शंकर की हरियाली का विधान है जो गांव के प्राचीन मंदिर के गर्भगृह में डाली जाती है, उन्होंने बताया कि 24 अगस्त को कालरात्रि का आयोजन होगा जिसमें रात्रि जागरण और  पांडव नृत्य के साथ लोक संस्कृति की धूम रहेगी वहीं 25 अगस्त को दिन के समय गांव वालों की मौजूदगी में हरियाली काटी जायेगी जो भोले नाथ के आशीर्वाद के रूप में पूरे गांव व भक्तजनों को वितरित की जायेगी, गांव के बुजुर्ग हुकम सिंह राणा, सुरेंद्र दत्त गौड़, गजे सिंह राणा, चंद्र सिंह रावत, शांति प्रसाद गौड़ आदि लोगों ने  बताया कि बंगसील देवलसारी वह सुप्रसिद्ध तीर्थाटन है जहां स्वयं भगवान त्रिलोकी नाथ घने देवदार के मध्य क्यारीनुमा रमणीक जगह पर बिराजमान है, उन्होंने बताया कि वैसे तो उत्तराखंड के हर कण कण में शंकर भगवान का वास है, जिनकी पूजा नाग के रूप में की जाती है, लेकिन बंगसील देवलसारी प्रदेश के उन जाने माने स्थानों में अलग है जहां पर साक्षात त्रिलोकी नाथ निवास करते है, इस पौराणिक मंदिर की परिक्रमा करने आज भी रात्रि के चौथे पहरे में शेर आता है, ग्रामीणों ने बताया कि देवलसारी स्थित जगह पर कभी बंगसील निवासियों की धान की क्यारियां हुआ करती थी, यही भाद्रपद का महीना था पूरी क्यारियां धान से लहरा रही थी कि अचानक भोले नाथ एक साधु के रूप में प्रकट हुए और धान की रखवाली के लिए बैठे ग्रामीण से देवल सारी में रुकने के लिए जगह मांगी, त्रिकालदर्शी की मांग को ग्रामीण ने ठुकरा दी और वहा से साधु रूपी भोले नाथ को भगा दिया, लेकिन सृष्टि के नायक को यह स्थान पसंद था जिसके पश्चात उन्होंने उस लीला का मंचन किया जिसके लिए साधु भेष धारण करके आए थे कि पलभर में ही संपूर्ण धान की क्यारियां देवदार में तब्दील हो उठी, यही कारण है कि आज भी भोले नाथ को देवदार से निकली पीली पिठाई का तिलक, व नए चावल ही चढ़ाए जाते है, अब भोले नाथ की इस लीला से हैरान ग्रामीणों के पास चिंतन के शिवाय कुछ नहीं बचा था, आपसी विचार विमर्श के पश्चात जब ग्रामीण खेतों के पास गए तो उनको एक शिवलिंग रूपी पत्थर मिला, जिसके पश्चात भोले नाथ ग्रामीणों को स्वप्न में आकर देवलसारी का वृत्तांत सुनाया और कोनेश्वर महादेव के रूप में स्थापित होने की बात कही, तब से ही भोलेनाथ की हरियाली का विधान एक साल देवलसारी और एक साल बंगसील स्थित मंदिर में भाद्रपद में ही डाली जाती है।

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